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हृदय know your heart

हमारे शरीर का सबसे कोमल अंग है हृदय जो 1 मिनट में 72 बार धड़कता है जो कभी थकता हारता नहीं है लगातार कम करता रहता है | आप के लिए इतना कुछ करता है क्या आप अपने हृदय को जानते है की वह कैसा होता है ?किस आकर का दिखता है ?कौन कौन भाग होते है | वैसे आप ने हृदय के बारे में बहुत सुना होगा ,आइये आज थोड़ा करीब से जानते है |


हृदय (Heart):-

about heart
heart

हृदय रुधिर परिसंचरण तन्त्र का प्रमुख एवं विशिष्ट अंग है क्योंकि यहीं से बहुत-सी नलियाँ निकलकर सारे शरीर में फैली रहती हैं। ये नलियाँ रुधिर को हदय में आने व ले जाने का काम करती हैं। भ्रमण के दौरान रुधिर नलिकाएँ विकारों से भर जाती हैं। विकारों से भर जाने के बाद वे अशुद्ध रुधिर हृदय में ही वापस लाती हैं। हृदय से ही अशुद्ध रुधिर को शुद्ध होने के लिए फेफड़ों में भेजा जाता है। हृदय में या हृदय की ओर रुधिर ले आने वाली वाहिनियों को शिराएँ (veins) कहते हैं और हृदय से रुधिर ले जाने वाली नलियों को धमनियाँ (arteries) कहते हैं।

हृदय नाशपाती के आकार से  मिलता-जुलता एक मांसपिण्ड है. जिन मांसपेशियों से यह निर्मित हैं वे एक अलग ही विशिष्ट वर्ग की होती हैं जिन्हें हार्दिकी पेशियाँ (cardiac muscles) कहते हैं। इसका वजन 250-300 ग्राम के लगभग है। हृदय की स्थिति वक्ष में दाएँ और बाएँ फेफड़ों के बीच तथा मध्यच्छद पेशी (diaphragm) के ऊपर होती है। हृदय के ऊपर सौत्रिक तन्तुओं का एक आवरण चढ़ा रहता है, जोकि महीन रेशेदार तथा पारदर्शक होता है। इसमें से थोड़ा-थोड़ा द्रव-सा निकलता रहता है. जो हृदय को तर रखता है और हृदय जब फूलता एवं सिकुड़ता है, तब उसे आवरण से रगड़ खाने से बचाता है। इस आवरण को हृदय कोष या हृदयावरण (pericardium) कहते हैं। उसके दो पम्प एक दाएँ तरफ, दूसरा बाएँ तरफ अवस्थित है। लेकिन ये दोनों पम्प आपस में जुड़े हुए होते हैं तथा प्रत्येक पम्प के दो हिस्से होते हैं।


हृदय की संरचना (Structure of Heart):-

• दायाँ अलिन्द (Right atrium/auricle)
• दायाँ निलय (Right ventricle)
• बायाँ अलिन्द (Left atrium/auricle)
• बायाँ निलय (Left ventricle)


दायाँ अलिन्द (Right Atrium):- 

दायाँ अलिन्द हृदय का वह भाग है, जिसमें समस्त शरीर का अशुद्ध रुधिर संग्रहित होता है। अशुद्ध रुधिर को फैलाने का कार्य शिराओं द्वारा किया जाता है। इस कक्ष की भित्तियाँ पतली होती हैं। रुधिर को ग्रहण कर रुधिर को इस गति से धक्का देना पड़ता है कि वह बीच के छिद्र को खोलकर
निलय में चला जाए। रुधिर का दबाव अधिक रहने के कारण रुधिर निलय की ओर ही बढ़ता है तथा महाशिराओं में वापस नहीं जाता है। दाएँ अलिन्द में तीन छिद्र होते हैं
1. ऊर्ध्व महाशिरा (Superior vena cava). 
2. निम्न महाशिरा (Inferior vena cava)
3. अलिन्द निलय के मध्य के द्वार का।

about heart valve
heart valve

बायाँ अलिन्द (Left Atrium):- 

हृदय के बाएँ भाग का ऊपरी कक्ष बायाँ अलिन्द होता है। यह कक्ष दाएँ अलिन्द के बराबर  स्थित होता है किन्तु आकार में उससे कुछ छोटा होता है। इसकी भित्तियाँ दाएँ अलिन्द की अपेक्षा मोटी होती हैं। फुफ्फुसीय शिराओं के माध्यम से ऑक्सीजन से भरपूर शुद्ध रुधिर बाएँ अलिन्द तक पहुँचता है। तत्पश्चात् रुधिर धक्का खाकर दाब से बाएँ अलिन्द तथा बाएँ निलय के मध्य स्थित कपाट को खोलकर बाएँ निलय में पहँच जाता है। जैसे ही रुधिर बाएँ निलय में भर जाता है, मध्य कपाट अपने आप बन्द हो जाते हैं और रुधिर वापस लौट नहीं पाता है।


दायाँ निलय (Right Ventricle):- 

दाएँ अलिन्द से अशुद्ध रुधिर मध्य कपाट से होकर दाएँ निलय में गिरता है। मध्य कपाट बन्द हो जाने से रुधिर वापस नहीं लौट पाता है। दूसरे ही क्षण दायाँ निलय भी सुंकचित होता है। इससे रुधिर को बाहर निकल जाने के लिए धक्का मिलता है। ऐसा होते ही अशुद्ध रुधिर फुफ्फुसीय धमनी (pulmonary artery) से होकर फुफ्फुसों में शुद्ध होने के लिए चला जाता है। निलय से जैसे ही रुधिर धमनी में जाता है, नलिका के मुख-छिद्र के कपाट बन्द हो जाते हैं और अशुद्ध रुधिर वापस लौटकर निलय में नहीं आ सकता। फुफ्फुसीय धमनी के अतिरिक्त अन्य सभी धमनियों में शुद्ध रुधिर बहता है।


बायाँ निलय (Left Ventricle):- 

हृदय के बाएँ भाग का निचला कक्ष बायाँ निलय होता है। यह अन्य सभी कक्षों से बड़ा है एवं इसकी भित्तियाँ भी अपेक्षाकृत मोटी होती हैं। इसे अपने कार्य को सम्पन्न करने में अधिक श्रम करना पड़ता है। बाएँ अलिन्द के संकुचन के फलस्वरूप शुद्ध रुधिर बाएँ निलय में भर जाता है। बाएँ निलय के संकुचित होने पर शुद्ध रुधिर, इसमें से निकलने वाली एकमात्र नलिका महाधमनी (aorta) के द्वार को धक्के से खोल देता है एवं रुधिर उसी में से बहने लगता है। महाधमनी के मुख पर स्थित कपाट रुधिर को आगे प्रवाहित करने में सहायता पहुँचाते हैं एवं वापस लौटने से रोकते हैं। इस प्रकार बायाँ निलय शरीर के ऊतकों को रुधिर वितरण का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करता है।


हृदय के कार्य (Functions of Heart):-

heart valve,mitral valve
heart function direction

रुधिर परिवहन में हृदय का अपना विशेष स्थान है क्योंकि यहीं से नलियाँ निकलकर सारे शरीर में फैलती हैं। शरीर को विभिन्न पोषक तत्व, ऑक्सीजन तथा रुधिर को लाने ले जाने का कार्य हृदय द्वारा सम्पादित किया जाता है। हृदय शरीर के सभी अंगों से विभिन्न शिराओं के माध्यम से अशुद्ध रुधिर दाएँ अलिन्द में संग्रहित करता है। 

संकुचन प्रक्रिया द्वारा रुधिर दाएँ अलिन्द से दाएँ निलय में उतर जाता है। इस बीच इनके मध्य स्थित कपाट बन्द हो जाता है। तत्पश्चात् दाएँ निलय के संकुचित होने से रुधिर फुफ्फुसीय धमनी के माध्यम से फुफ्फुसों में शुद्ध होने के लिए चला जाता है।

फुफ्फुसों में शुद्ध रुधिर शिराओं के माध्यम से बाएँ अलिन्द में आता है। बाएँ अलिन्द के संकुचन होने से रुधिर धक्के से बाएँ निलय में पहुँच जाता है। बायाँ निलय जैसे ही रुधिर से भर जाता है, वैसे ही मध्य का कपाट बन्द हो जाता है। रुधिर परिसंचरण के अगले चरण में निलय के संकुचित होने के फलस्वरूप शुद्ध रुधिर महाधमनी के द्वारा हृदय से बाहर निकल जाता है। 

हृदय का प्रमुखकार्य रुधिर को शरीर के समस्त अंगों में रुधिर का समुचित वितरण करना है। वास्तव में यह एक पम्प का काम करता है। इसमें एक ओर रुधिर आता है दूसरी ओर से बाहर निकाल दिया जाता है।



रुधिर वाहिनियाँ (Blood Vessels):- 

मानव शरीर के रुधिर परिवहन तन्त्र के अन्तर्गत हृदय के अतिरिक्त निम्नलिखित रुधिर वाहिनियाँ भाग लेती हैं
• धमनियाँ (Arteries) • शिराएँ (Veins)• केशिकाएँ (Capillaries)

धमनियाँ (Arteries):- 

structure of arteries
arteries

हृदय के रुधिर को समस्त शरीर में वितरित करने वाली नलिकाओं को धमनी कहते हैं। हृदय के बाएँ अलिन्द से एक धमनी जिसे  'महाधमनी' कहते हैं, शुद्ध रुधिर को हृदय से बाहर शरीर में ले जाती  है। दाएँ अलिन्द से एक धमनी जोकि आगे दो भागों में विभक्त हो जाती है, ‘फुफ्फुसी धमनियाँ' कहलाती हैं। ये हृदय से अशुद्ध रुधिर
को फुफ्फुसों तक पहुँचाती हैं।





शिराएँ (veins):-

structure of veins
branch of veins

रुधिर परिवहन तन्त्र में अशुध्द  रुधिर का संवहन करने वाली वाहिकाआ को शिराए कहा जाता है। फफ्फसीय शिराओं के अतिरिक्त शेष सभी शिराआ में अशुद्ध रुधिर का संचरण होता है। जहाँ पर कोशिकाओं का अन्त होता है, यही से शिराओं का विकास होता है। शिरा में भी धमनी की भाँति तीन तहें होती हैं, वे उतना लचीली नहीं होती हैं। शिरा की दीवार धमनी की दीवार की अपेक्षा पतली होती है एवं पेशीबाही तह उतनी सशक्त नहीं होती।

इसी कारण इनमें रुधिर अपेक्षाकृत धीमी गति  से बहता है। रुधिर से विरक्त हो जाने पर इनकी दीवारें आपस में चिपक जाती हैं। वैसे मौलिक रूप से यह धमनी के समान नलिकाकार ही होती है लेकिन धमनी की अपेक्षा शिराओं की दीवारों में कम पेशियाँ होती हैं, अत: ये पतली एवं कमजोर होती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि शिराओं की रचना धमनी की रचना के समान हैं |


केशिकाएँ (Capillaries):-

branch of capillaries
structure of capillaries

केशिकाएँ धमनियों और शिराओं के बीच बारीक जाल जैसी होती हैं। ये अत्यन्त महीन रुधिर नलिकाएँ हैं, जिनसे होकर जीवन के लिए उपयोगी द्रवों का ऊतकों तथा कोशिकाओं तक संवाहन होता है। ये बाल से भी ज्यादा बारीक होती हैं और शरीर के  समस्त तन्तुआ में जाल की भांति फैली हुई हैं। एक केशिका का व्यास प्रायः 1/120 मिमी होता है।

केशिकाए क्या  कार्य करती है :-


  1. रुधिर को कोशिकाओं के समीप लाना उनके भरण पोषक के लिए पोषण देना।
  2.  प्रणाली विहीन ग्रन्थियों के स्राव को रुधिर में पहुँचाना।
  3. आँतों से पोषक तत्वों को ग्रहण करना।
  4. गुर्यों में मूत्र को छानने का कार्य करना।
  5. ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड की अदला-बदली करना।


रुधिर दाब (Blood Pressure):-


  1. • रुधिर द्वारा हृदय की बार-बार पम्पिंग के कारण रुधिर नलिकाओं की दीवारों पर पड़ने वाला दाब रुधिर दाब कहलाता है।
  2. • रुधिर दाब को हमारे शरीर के कुछ स्थानों पर महसूस किया जा सकता है| जैसे- हाथ की कलाई।
  3. • उत्तेजित अवस्था में हृदयस्पन्दन की दर बढ़ जाती है।
  4. • सामान्य मनुष्य का रुधिर दाब 120/80 mm Hg होता है।
  5. • हृदयस्पन्दन (Heart beat) की सामान्य दर 70-72 बार प्रति मिनट होती है।

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