शरीर के अन्य अंगों की तरह आँखों को भी कई तरह के विकार और रोग प्रभावित करते हैं, किन्तु सामान्य रूप से मिलने वाले विकार और रोग को आम जन नहीं समझ पाते है और रोग एक बड़ा रूप ले लेता है तो चलिए आज के इस पोस्ट में आंख से जुडी कुछ विकारो और रोगों को जानते है
नेत्र गोलक (Eye balls) का व्यास कम होने पर दूरदर्शिता हो जाता है। इसमें केवल दूर की वस्तुओं को ही साफ देखा जा सकता है. क्योंकि पास की वस्तुओं से आई प्रकाश की किरणें अपवर्तन के बाद केन्द्रीभूत होने से पहले ही रेटिना पर पड़ जाती हैं, अर्थात् फोकस बिंदु रेटिना के पीछे हो जाता है। फलतः पास की वस्तुएँ धुंधली दिखाई देती है। इस दोष के निवाार्थ व्यक्ति को उत्तल लेन्स (convex lena) वाला चश्मा लगाना पड़ता है।

इस दोष में नेत्र के गोलक के कुछ बड़े हो जाने या कॉर्निया अथवा लेंस के अधिक उत्तल (Canvex) हो जाने के कारण फोकस बिन्द एवं रेटिना के बिच की दूरी बढ़ जाती है। अत: पास की वस्तुएँ तो साफ दिखाई देती हैं, परन्तु दूर की वस्तुएँ धुंधली। दूर की वस्तुओं को देखने के लिए ऐसे व्यक्तियों को अवतल (Cancave lens) लेन्स वाला चश्मा लगाना पड़ता है।

वृद्धावस्था में लेन्स अथवा सिलियरी पेशियों की लचक घट जाती है, कारणस्वरूप समीपवर्ती वस्तुओं का प्रतिबिम्ब अच्छी तरह फोकस नहीं हो पाता। इस प्रकार मूलत: विकास सामंजस्य में होता है। रोगी दर की वस्तुए देखने में सक्षम होता है, ऐसा रोगी पढ़ते समय पुस्तक को आँखों से बहुत दूर रखता है। उत्तल लेन्स चश्मे के प्रयोग से रोगी को लाभ होता है।

कंजक्टाइवा का शोथ विभिन्न सूक्ष्म जीवों के फलस्वरूप होता है तथा यह तीव्र अथवा चिकारी हो सकता है, प्रभावित नेत्र में जलन तथा किरकिरापन अनुभव होता है, पलके सूज जाती हैं तथा कंजंक्टाइवा लाल हो जाता है। आँखों से अश्रु बहने लगते हैं, रोगी प्रकाश सहन नहीं कर पाता है, यह दशा प्रकाश असह्यता (Photophobia) कहलाती है, चिकित्सा का उद्देश्य संक्रमण समाप्त करना होता है।

यह वायरसजनित आँख की कॉर्निया का रोग है, इसमें आँखें लाल हो जाती हैं, कॉर्निया में वृद्धि हो जाती हैं, जिससे रोगी निद्राग्रस्त-सा लगता है। आँख में दर्द बना रहता है। पानी आता है तथा दृष्टि कमजोर हो जाती है। इसके निवार्णार्थ एण्टीबायोटिक और मलहम का प्रयोग करना चाहिए।

इस दशा में लेन्स आंशिक रूप से अथवा पूर्णतः अपारदर्शी हो जाता है। कैटेरेक्ट अनेक कारणों से हो सकता है, उदाहरणतः क्षति, मधुमेह तथा वृद्धावस्था। वृद्धावस्था में व्यपजननीय परिवर्तनों के फलस्वरूप होने वाला कैटेरेक्ट, जरा कैटेरेक्ट (Senile cataract) कहलाता है, इस दशा में लेन्स का उच्छेदन करना होता है और लेन्स के स्थान पर कृत्रिम लेन्स प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। (IOL-Intra Ocular lens Transplantation)। इसके बाद दृष्टि बहुत अच्छी हो जाती है और बहुत कम नम्बर के चश्मे से सामान्य दृष्टि मिल जाती है।

नेत्र-गोलक के वेश्मों में भरे तरल पदार्थों के कारण जब अन्तः नेत्र तनाव (Intra-ocular tension) बढ़ जाता है, तो उस दशा को ग्लोकोमा की संज्ञा प्रदान की जाती है। इस दशा में नेत्र के अग्र कक्ष का तरल निष्कासन नहीं हो पाता है। फलत: दृष्टि तन्त्रिका पर दबाव के कारण दष्टि धीरे-धीरे क्षीण हो जाती है। इसका उपचार निम्न प्रकार से किया जाता है नेत्र-तारे को संकीण करने के लिए तारा संकोचक औषधियाँ (miotic drugs), सिकाई, मूत्रक (diuretics) औषधियाँ। इन औषधियों के प्रयोग से अन्तः नेत्र तनाव कम होता है। इसके अलावा तीव्र ग्लोकोमा की स्थिति में एक अन्तः नेन ऑपरेशन (Trephining) द्वारा एक सूक्ष्म छिद्र बनाया जाता है, जिसका उददेश्य अग्र कक्ष के तरल को स्थायी निकास प्रदान करना है |

इस रोग में अपवर्तन (refraction) दोष पूर्ण होने के कारण प्रकाश की किरणें रेटिना में एक बिन्दु पर केन्द्रित नहीं हो पाती। कारण यह है कि इस दशा में लेंस की उत्तलता अनियमित होती हैं तथा इसके वक्रो में परिवर्तन आ जाता है। उपचार के लिए रोगी को ऐसे लेन्स वाला चश्मा दिया जाता है, जो इस
वक्र परिवर्तन का पूरक हो तथा इस प्रकार दृष्टि दोष की क्षतिपूर्ति कर सकें।

विकारग्रस्त तथा अपारदर्शी कॉर्निया के स्थान पर सामान्य कॉर्निया रोपित करना, कॉर्निया रोपण कहलाता है। कॉर्निया हाल ही में निष्कासित अथवा दान किए गए नेत्र से प्राप्त किया जाता है, प्रतिस्थापित कॉर्निया द्वारा रोगी पुनः देखने में समर्थ हो जाता है, आजकल कॉर्निया बैंक (Corneal bank) भी स्थापित किए जा चुके हैं।
संसार में एक करोड़ से अधिक अन्धे व्यक्ति हैं, अनुमान है कि यदि समय पर आधुनिक अन्धता निरोधी उपाय तथा औषधियों या सर्जरी द्वारा आवश्यक अन्य चिकित्सा उपलब्ध हो पाती, तो उनमें से आधे से अधिक को अन्धेपन से बचाया जा सकता था। स्मरणीय है कि भारत में निर्वाय अथवा निरोध्य अन्धता के मूल्य कारण ट्रेकोमा, चेचक, तथा अन्य संक्रमण, विटामिन A की कमी, कैटेरेक्ट तथा चिरकारी सरल ग्लोकोमा है। संसार के अन्य उष्ण तथा विकासशील देशों में भी अन्धता सामान्य है। उपरोक्त के अतिरिक्त इन देशों में कुछ अन्य कारणों से भी अन्धता होती है, उदाहरणत:
औंकोसकिएसिस (Onchocerciasis), यह रोग मध्य एशिया तथा अफ्रीका में अधिक पाया जाता है। यह डांस अथवा नैट (Gnat) नामक कीट द्वारा फैलता है तथा इसे नदी अन्धता (River blindness) भी कहते हैं। अन्धता के कुछ अन्य कारण निम्नलिखित हैं |
चोट तथा दुर्घटना, उचित बचाव के बिना अत्यधिक प्रकाश के प्रति अनावरण (उदाहरणत: वेल्डिंग करने वाले व्यक्ति, पर्वतारोही), मेथेनॉलयुक्त शराब अथवा स्प्रिट का सेवन। परावर्तन असामान्यता, अश्रु उपकरण अवरोध तथा अश्रुकोष शोथ के विषय में इस अध्याय में पहले ही लिखा जा चुका है।
त्वच रोग के बारे में जानने के लिए click here
दूरदृष्टिता (Long Sight or Hypermetropia):-
नेत्र गोलक (Eye balls) का व्यास कम होने पर दूरदर्शिता हो जाता है। इसमें केवल दूर की वस्तुओं को ही साफ देखा जा सकता है. क्योंकि पास की वस्तुओं से आई प्रकाश की किरणें अपवर्तन के बाद केन्द्रीभूत होने से पहले ही रेटिना पर पड़ जाती हैं, अर्थात् फोकस बिंदु रेटिना के पीछे हो जाता है। फलतः पास की वस्तुएँ धुंधली दिखाई देती है। इस दोष के निवाार्थ व्यक्ति को उत्तल लेन्स (convex lena) वाला चश्मा लगाना पड़ता है।
निकटदृष्टिता (Short Sight or Myopia):-

इस दोष में नेत्र के गोलक के कुछ बड़े हो जाने या कॉर्निया अथवा लेंस के अधिक उत्तल (Canvex) हो जाने के कारण फोकस बिन्द एवं रेटिना के बिच की दूरी बढ़ जाती है। अत: पास की वस्तुएँ तो साफ दिखाई देती हैं, परन्तु दूर की वस्तुएँ धुंधली। दूर की वस्तुओं को देखने के लिए ऐसे व्यक्तियों को अवतल (Cancave lens) लेन्स वाला चश्मा लगाना पड़ता है।
जरादूरदृष्टिता (Presbyopia):-

वृद्धावस्था में लेन्स अथवा सिलियरी पेशियों की लचक घट जाती है, कारणस्वरूप समीपवर्ती वस्तुओं का प्रतिबिम्ब अच्छी तरह फोकस नहीं हो पाता। इस प्रकार मूलत: विकास सामंजस्य में होता है। रोगी दर की वस्तुए देखने में सक्षम होता है, ऐसा रोगी पढ़ते समय पुस्तक को आँखों से बहुत दूर रखता है। उत्तल लेन्स चश्मे के प्रयोग से रोगी को लाभ होता है।
श्लेष्लेमाशोथ (Conjunctivitis):-

कंजक्टाइवा का शोथ विभिन्न सूक्ष्म जीवों के फलस्वरूप होता है तथा यह तीव्र अथवा चिकारी हो सकता है, प्रभावित नेत्र में जलन तथा किरकिरापन अनुभव होता है, पलके सूज जाती हैं तथा कंजंक्टाइवा लाल हो जाता है। आँखों से अश्रु बहने लगते हैं, रोगी प्रकाश सहन नहीं कर पाता है, यह दशा प्रकाश असह्यता (Photophobia) कहलाती है, चिकित्सा का उद्देश्य संक्रमण समाप्त करना होता है।
रोहा (Trachoma):-

यह वायरसजनित आँख की कॉर्निया का रोग है, इसमें आँखें लाल हो जाती हैं, कॉर्निया में वृद्धि हो जाती हैं, जिससे रोगी निद्राग्रस्त-सा लगता है। आँख में दर्द बना रहता है। पानी आता है तथा दृष्टि कमजोर हो जाती है। इसके निवार्णार्थ एण्टीबायोटिक और मलहम का प्रयोग करना चाहिए।
मोतियाबिन्दु (Cataract):-

इस दशा में लेन्स आंशिक रूप से अथवा पूर्णतः अपारदर्शी हो जाता है। कैटेरेक्ट अनेक कारणों से हो सकता है, उदाहरणतः क्षति, मधुमेह तथा वृद्धावस्था। वृद्धावस्था में व्यपजननीय परिवर्तनों के फलस्वरूप होने वाला कैटेरेक्ट, जरा कैटेरेक्ट (Senile cataract) कहलाता है, इस दशा में लेन्स का उच्छेदन करना होता है और लेन्स के स्थान पर कृत्रिम लेन्स प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। (IOL-Intra Ocular lens Transplantation)। इसके बाद दृष्टि बहुत अच्छी हो जाती है और बहुत कम नम्बर के चश्मे से सामान्य दृष्टि मिल जाती है।
ग्लोकोमा (Glaucoma):-

नेत्र-गोलक के वेश्मों में भरे तरल पदार्थों के कारण जब अन्तः नेत्र तनाव (Intra-ocular tension) बढ़ जाता है, तो उस दशा को ग्लोकोमा की संज्ञा प्रदान की जाती है। इस दशा में नेत्र के अग्र कक्ष का तरल निष्कासन नहीं हो पाता है। फलत: दृष्टि तन्त्रिका पर दबाव के कारण दष्टि धीरे-धीरे क्षीण हो जाती है। इसका उपचार निम्न प्रकार से किया जाता है नेत्र-तारे को संकीण करने के लिए तारा संकोचक औषधियाँ (miotic drugs), सिकाई, मूत्रक (diuretics) औषधियाँ। इन औषधियों के प्रयोग से अन्तः नेत्र तनाव कम होता है। इसके अलावा तीव्र ग्लोकोमा की स्थिति में एक अन्तः नेन ऑपरेशन (Trephining) द्वारा एक सूक्ष्म छिद्र बनाया जाता है, जिसका उददेश्य अग्र कक्ष के तरल को स्थायी निकास प्रदान करना है |
दृष्टिवैषम्य (Astigmatism):-

इस रोग में अपवर्तन (refraction) दोष पूर्ण होने के कारण प्रकाश की किरणें रेटिना में एक बिन्दु पर केन्द्रित नहीं हो पाती। कारण यह है कि इस दशा में लेंस की उत्तलता अनियमित होती हैं तथा इसके वक्रो में परिवर्तन आ जाता है। उपचार के लिए रोगी को ऐसे लेन्स वाला चश्मा दिया जाता है, जो इस
वक्र परिवर्तन का पूरक हो तथा इस प्रकार दृष्टि दोष की क्षतिपूर्ति कर सकें।
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मनुष्य में वायरस द्वारा होने वाले रोगों के बारे में जानने के लिए click here
कॉर्निया रोपण (Corneal Grafting):-

विकारग्रस्त तथा अपारदर्शी कॉर्निया के स्थान पर सामान्य कॉर्निया रोपित करना, कॉर्निया रोपण कहलाता है। कॉर्निया हाल ही में निष्कासित अथवा दान किए गए नेत्र से प्राप्त किया जाता है, प्रतिस्थापित कॉर्निया द्वारा रोगी पुनः देखने में समर्थ हो जाता है, आजकल कॉर्निया बैंक (Corneal bank) भी स्थापित किए जा चुके हैं।
दृष्टिहीनता (Blindness):-
संसार में एक करोड़ से अधिक अन्धे व्यक्ति हैं, अनुमान है कि यदि समय पर आधुनिक अन्धता निरोधी उपाय तथा औषधियों या सर्जरी द्वारा आवश्यक अन्य चिकित्सा उपलब्ध हो पाती, तो उनमें से आधे से अधिक को अन्धेपन से बचाया जा सकता था। स्मरणीय है कि भारत में निर्वाय अथवा निरोध्य अन्धता के मूल्य कारण ट्रेकोमा, चेचक, तथा अन्य संक्रमण, विटामिन A की कमी, कैटेरेक्ट तथा चिरकारी सरल ग्लोकोमा है। संसार के अन्य उष्ण तथा विकासशील देशों में भी अन्धता सामान्य है। उपरोक्त के अतिरिक्त इन देशों में कुछ अन्य कारणों से भी अन्धता होती है, उदाहरणत:
औंकोसकिएसिस (Onchocerciasis), यह रोग मध्य एशिया तथा अफ्रीका में अधिक पाया जाता है। यह डांस अथवा नैट (Gnat) नामक कीट द्वारा फैलता है तथा इसे नदी अन्धता (River blindness) भी कहते हैं। अन्धता के कुछ अन्य कारण निम्नलिखित हैं |
चोट तथा दुर्घटना, उचित बचाव के बिना अत्यधिक प्रकाश के प्रति अनावरण (उदाहरणत: वेल्डिंग करने वाले व्यक्ति, पर्वतारोही), मेथेनॉलयुक्त शराब अथवा स्प्रिट का सेवन। परावर्तन असामान्यता, अश्रु उपकरण अवरोध तथा अश्रुकोष शोथ के विषय में इस अध्याय में पहले ही लिखा जा चुका है।
आँखों के महत्त्वपूर्ण तथ्य(important facts of eyes):-
• नेत्रदान में नेत्र का कॉर्निया भाग दान किया जाता है।• नेत्र के किनारे पीले मोम जैसे तैलीय पदार्थ का स्रावण माइबोमियन ग्रन्थियाँ करती है।• अश्रु का स्रावण लैक्राइमल ग्रन्थियाँ करती हैं।• मनुष्य के आँख में पाए जाने वाला अवशेषी अंग निमीलक छद है।• दृष्टिवैषम्य (Astigmatism) रोग नेत्र के कॉर्निया भाग की असामान्यता के कारण उत्पन्न होता है।• नेत्र का आइरिस नामक भाग कैमरे के डायफ्रेम की भाँति कार्य करता है।• मोतिया बिन्दु (Contract) में आँख का नेत्र लेन्स भाग प्रभावित होता है।• नेत्रगोलक (Eyeballs) उभयोत्तल होता है।• रतौंधी का प्रमुख कारण रेटिनॉल की कमी है।• बिल्ली, गाय, भैंस, चीते एवं शेर आदि की आँखें रात में टैपीकम स्तर के कारण चमकती हैं।• सामान्य नेत्रों द्वारा हम 25-30 सेमी दूर की वस्तु को साफ देख सकते हैं।• दूरदर्शिता दोष में वस्तु का फोकस बिन्दु रेटिना के पीछे होता है।• दूरदर्शिता दोष में नेत्र गोलक में नेत्र गोलक का व्यास कम हो जाता है।• मोतियाबिन्द, ढलती आयु में होने वाली, नेत्रों की एक आम समस्या है। अब यह पूर्णतः प्रमाणित हो चुका है कि मोतियाबिन्द की एकमात्र चिकित्सा ऑपरेशन ही है। पहले आम धारणा थी कि पकने पर ही मोतियाबिन्द का ऑपरेशन होना चाहिए। अब यह धारणा बदल चुकी है अब नेत्र सर्जन कहते हैं कि मोतियाबिन्द जितना कच्चा होगा उतना ही अच्छा है। मोतियाबिन्द की सर्जरी में 'फेको' विधि काफी प्रभावी सिद्ध हुई है। अब ‘फेको' सर्जरी से भी उन्नत विधि विकसित हो गई है।
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