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त्वचा रोग (Skin Diseases)

beautiful skin
skin diseases
आज के समय में त्वचा रोग सामान्य सी बात हो गयी है ,बढ़ता हुआ  ultra-violet radiation ,pollution और भी बहुत सारी unwanted चीजो के  कारण skin disease को तो बढ़ा रहा है और साथ में और भी बीमारिया ला रहा है |

ज्यादातर लोग चहरे पर झुरिया ,शरीर पर दाने या फफोले ,या शरीर के किसी हिस्से में सफेद दाग पड़ने पर नहीं जान पाते  की ये कौन सा skin disease है और उस पर ध्यान भी नहीं देते यूही छोड़ देते है और वह बीमारी बढ़ जाति है |अगर प्राथमिक स्तर पर उसकी पहचान हो जाये तो उस रोग को जड़ से ख़त्म किया जा सकता है |


त्वचा के किसी भाग की असामान्य अवस्था को त्वचा रोग कहा जाता है। अर्थात् तन्त्रिका तन्त्र, आन्तरिक अंगों और अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में होने वाले विभिन्न विक्षोभों के कारण त्वचा रोग होते हैं। त्वचा शरीर की सतह का एक सुरक्षात्मक आवरण है तथा यह उन गुहाओं की उपकला के सातत्य में होती है जिनके द्वारा त्वचा पर खुलते हैं।


त्वचा का मानसिक गतिविधि से इतना घनिष्ठ सम्बन्ध होता है कि इसे आवेशों का दर्पण कहा जा सकता है। त्वचा अनेक ऐसे संक्रामण अथवा अन्य रोगों मेंभी प्रभावित हो सकती हैं जिनमें त्वचा विस्फोट (rashes) उत्पन्न होता है।

तो चलिए त्वचा रोग के बारे में जान लेते है ---


एक्जिमा (Eczema):-

skin disease in hand
eczema
यह त्वचा की बहुत पाई जाने वाली जीर्ण व्याधि हैं। बहुधा यह पैरों के ऊपरी भाग में या गर्दन के पीछे मिली है, इसके अतिरिक्त यह शरीर पर अन्य जगहों पर भी हो सकती है। दीर्घकालीन खुजली और धीरे-धीरे त्वचा में स्थायी परिवर्तन जैसे त्वचा का मोटा हो जाना, भूरा पड़ जाना, कभी-कभी मवाद बनना, कभी पानी जैसा स्राव निकलना, कभी दर्द, कभी जलन आदि लक्षण मिलते हैं। आधुनिक दृष्टिकोण से इसे एलर्जिक व्याधि मानकर उपचार किया जाता है। स्टेरॉइड (Steroid) समूह के मलहमों के लगाने से तत्काल आराम मिलता है, किन्तु व्याधि बहुधा यथावत् बनी रहती है।


रजत त्वचा (Psoriasis):-

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proriasis
सोरिएसिस त्वचा की एक प्रचलित महत्त्वपूर्ण जीर्ण व्याधि है। इसमें त्वचा की परतों के बीच आपसी सम्बन्ध ढीले हो जाने से ऊपरी परते निकलती रहती हैं और कई स्थानों पर लाल-लाल चकते से बनते रहते हैं। चाँदी के वर्क जैसी त्वचा की परतों का निकलना इसका प्रमुख लक्षण है। इस व्याधि के होने में मानसिक तनाव की भी काफी भूमिका होती है अथवा उस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। यह विशेषकर घुटने व कोहनी के जोड़ों के पास से शुरू होती है। चेहरे कपाल, वक्ष और उदर पर भी यह बहुत फैल सकती है। अधिकांश में यह व्याधि ठण्ड में अधिक बढ़ती है। इसकी चिकित्सा बहुत दुःसाध्य है।





मत्स्य त्वचा (Ichthyosis):-

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ichthyosis
यह एक जन्मजात त्वचा रोग है जिसमें त्वचा मत्स्य त्वचा का रूप ले लेता है। इसमें त्वचा बहुत रूखी रहती है, उस पर कड़े छिलके से महसूस होते हैं, जो विशेषकर सर्दियों में काफी कष्ट कर होते हैं। इसमें ग्लिसरीन एवं वैसलीन का प्रयोग आरामदायक होता है।








पित्ती (Urticaria):-

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urticaria
स्थानिक पित्ती अर्थात अर्टीकेरिया ऐसे पदार्थों के सम्पर्क में आने से होती हैं जिनमें क्षोभकारी तत्व विद्यमान हों (उदाहरणत: बर्र दंश, ततैया दंश और बिच्छू बूटी से सम्पर्क) अथवा जिनके प्रति काई व्यक्ति संवेदनशील या एलर्जिक हो (उदाहरणतः सौन्दर्य प्रसाधन तथा कपड़े धोने के कुछ पाउडर)। सार्वदैहिक पित्ती ऐसा भोजन खाने से होती है, जिसके प्रति कोई व्यक्ति संवेदनशील हो, ऐसा भोजन बहुधा प्रोटीनयुक्त होता है। (यथा अण्डा, मछली) इसमें लगतार लाला चकते, जलन, खुजली आते-जाते रहते हैं और यह समस्या महीनों या वर्षों रह सकती है। इसके चिकित्सा के लिए एण्टी एलर्जिक औषधियाँ, एविल, सेट्रीजिन आदि दी जाती हैं।






एथलीट फुट (Athlete's Foot):-

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athlete's foot disease
यह ट्राइकोफाइटोन नामक कवकजनित रोग है, जिसका संक्रमण जमीन से होता है। यह रोग त्वचा के मुलायम हिस्से को प्रवाहित करता है, खासकर अंगुलियों के बीच में।







हर्पीज  (Herpes):-

यह त्वचा का वाइरस संक्रमित रोग है, जो दो प्रकार का होता है—हर्पीज  जोस्टर एवं हर्पीज  जेनीटेलिस।
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किसी नस (Nerve) के प्रसार की दिशा में दाने, द्रव युक्त विस्फोट, दाह एवं वेदना आदि लक्षणों से युक्त व्याधि हर्पीज  जोस्टर कहलाती है, जबकि शिश्न मुण्ड (Glans Penis) पर नन्हें-नन्हें दाने का निकलना हर्पीज  जेनीटेलिस की संज्ञा से जाना जाता है। उक्त दोनों प्रकार के रोग के लिए चिकित्सा विशेषज्ञ से सलाह आपेक्षित होता है।




खाज (Scabies):-

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scabies
यह रोग एकेरस स्केबीज (Acarus scabies) नामक कवक से होता है।यह पश-परजीवी. खजली-कुटकी के द्वारा होता है, जो देखने में कछुए सी  लगती है इस रोग में त्वचा में खुजली होती है तथा सफेद दाग पड़ जाते हैं। इसके उपचार के लिए ऐसे पदार्थ प्रयोग में लाए जाते हैं, जो शृंगी परत कोढीला करें तथा सूक्ष्मजीवियों को नष्ट कर दें।







कुष्ठ (Leprosy):-

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leprosy
'कुष्ठ एक दुःसाध्य चिरकारी रोग है, जो माइकोबैक्टीरियम लिप्रे (हैन्सेन बैसिलस) से होता है। यह देखने में टुबरकिल वैसिलस जैसा होता है। रोग के प्रथम चिह्न संक्रमण के चार से छ: साल बाद और उससे भी अधिक साल (10 से 20 वर्ष) प्रकट होते हैं। कुष्ठ के कारक पदार्थ मनुष्य के शरीर में नासाश्लेष्मा, ऊपरी श्वासपथ या परिवार के सदस्य रोगी या परिचित के निकट और अधिक समय तक सम्पर्क में रहने से पहुँचते हैं।



प्रतिकूल स्वच्छ-स्वास्थ्य परिस्थितियों तथा रहने के लिए निम्न स्तर से संक्रमण बढ़ता है। यह रोग मुख्य रूप से बचपन में हो जाता है। इस रोग में त्वचा. श्लेष्मलकला. तन्त्रिका तन्त्र और आन्तरिक अंग सम्मिलित हैं। कुष्ठ की दो मुख्य किस्में पहचानी गई है। लेप्रोमैटस या दुर्दम, दुसाह्य और
गुलिकाभ या सुदम हल्की किस्म।




गंजापन (Baldness):-

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baldness
यह टिनिया केपिटिस (Taenia Capitis) नामक कवक से होता है। इस रोग से सिर के बालों की ग्रन्थियाँ कवक द्वारा नष्ट कर दी जाती है। जिससे सिर के बाल टूटने लगते हैं। अन्त में मनुष्य गंजा हो जाता है।






दाद (Ringworm):-

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ringworm
यह रोग टाइकोफाइटान (Trickophyton) नामक कवक से फैलता है। कवक त्वचा के अन्दर अपना जाल (mycelia) बना लेते हैं जिससे त्वचा पर लाल रंग के गोले पड़ जाते है |









त्वचा से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथ्य (important facts related skin disease ):- 


  1. त्वचा में स्पर्श तन्त्रिका अन्तांग (Tactile nerve endings) स्थित होते हैं।
  2. त्वचा शरीर के तापमान के नियन्त्रण में सहायक होती है।
  3. शरीर से निकलने वाली गर्मी का मुख्य भाग त्वचा से ही निकलता है।
  4. त्वचा शरीर से होने वाली जल हानि को नियन्त्रित करती है।
  5. त्वचा में उत्सर्जी, स्रावी तथा अवशोषी गुण पाए जाते हैं। .
  6. त्वचा सूर्य के प्रकाश में विटामिन D का निर्माण करती है।
  7. त्वचा में स्थित छोटी कोशाकार (Sebaceous glands) पाई जाती है. जिससे वसामय स्राव सीबम (Sebum) स्रावित होता है। यह पदार्थ रोमों को मृद, चिकना तथा चमकदार बनाए रखता है।
  8. त्वचा के नीचे स्थित वसा ऊतक (एपिडोस ऊतक), शरीर के प्रमुखवसा डिपों हैं।
  9. त्वचा, बाल तथा नख में केराटिन (Keratins) नामक प्रोटीन पाई जाती है।
  10. मनष्य एवं जन्तओं की त्वचा कोशिकाओं में 7 डी हाइड्रोकोलेस्ट्रॉल पाई जाती है, जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से कोलोकैल्सीफेरॉल अर्थात विटामिन डी में बदल जाती है।
  11. रोम, नख तथा स्वेद ग्रन्थियाँ त्वचा के उपांग (appendages) माने जाते हैं 
  12. पसीने में लाइसोजाइम नामक विषाणु नाशक एन्जाइम पाया जाता है।



                               

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