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red blood cells |
भोजन पचने के पश्चात् रुधिर के रूप में परिवर्तित होकर समस्त ऊतकों तक पहुँचता है। रुधिर एक लाल दिखाई देने वाला तरल द्रव है। रुधिर जीवन का एक विशिष्ट तत्व है। शरीर के सभी कार्य इसी द्रव पर आधारित हैं। किसी धमनी के कटने पर जो रुधिर बाहर निकलता है वह चमकीले गहरे लाल रंग का होता है।
किसी शिराके कट जाने पर जो रुधिर बाहर आता है, वह कुछ-कुछ बैंगनी रंग (नीलापन लिए हुए) का होता है। रुधिर को लाल रंग प्रदान करने वाला पदार्थ हीमोग्लोबिन' कहलाता है। रुधिर हृदय तथा वाहिनियों के द्वारा समस्त शरीर मे सदैव संचारित होता रहता है। ये सब बनावट और रुचि में एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न है। रुधिर का वितरण करने के लिए शरीर में कोशिकाओं का घना जाल फैला हुआ है।
ये कोशिकाएँ ऊतको को रुधिर के द्वारा पोषक तत्व एवं ऑक्सीजन O2, देती हैं और उनमें उत्पन्न विकारो को अपने मे शोषित कर लेती है। विकारों से भर जाने के पश्चात्रक्त अशुद्ध हो जाता है। अशुद्ध रुधिर से भरी नलिकााँ शिरिकाएँ (venules) कहलाती है। ये सूक्ष्म नलिकाएँ आपस मे मिलकर बड़ी शिराओ (veins) का रूप धारण कर लेती है।
सामान्य स्वस्थ शरीर में रुधिर की मात्रा 6 लीटर होती है। रुधिर की प्रकृति क्षारीय होती है। रुधिर का परिमाण शरीर के भार का 1/20 भाग होता है। शरीर मे किसी कारण से रुधिर की कमी हो जाने से मनुष्य कमजोर और तरह-तरह के रोगो का शिकार हो जाता है।
रुधिर में क्या क्या होता है (Composition of Blood):-
अणु विक्षण यन्त्र (microscope) की सहायता से लाल रंग के रुधिर की एक बूंद को देखने से ज्ञात होता है कि एक हल्के रंगविहीन प्रकार के तरल पदार्थ रुधिर प्लाज्मा (plasma) में असंख्य कणिकाएँ तैर रही होती हैं, जो हल्के पीले रंग की होती हैं। ये हल्की पीली कणिकाएँ सामूहिक रूप से लाल रंग की दिखाई पड़ती हैं.जिससे रुधिर का रंग लाल दिखाई देता है। रुधिर में श्वेत कणिकाएँ भी होती हैं।लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCs):-
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red blood cells |
मानव रुधिर मे लाल कणिकाएँ (RBCs) सबसे अधिक मात्रा में रहती है। रुधिर में इनकी संख्या इतनी अधिक होती है कि रुधिर लाल रंग का दिखाई देता है। इनका आकार छोटी-छोटी गोल तथा चपटी टिक्कियों जैसा होता हैं, जिनकी दोनो सतहे अन्दर की ओर कुछ गहरी तथा अवतल होती हैं। यह बहुत लचीली होती है।
ये कणिकाएँ अर्द्धतरल जीवद्रव्य (protoplasm) की बनी होती हैं। इसमें रंग प्रदान करने वाला पदार्थ हीमोग्लोबिन रहता है। हीमोग्लोबिन लाल-पीले रंग का एक पदार्थ है. जो ऑक्सीजन के संवहन का कार्य करता है। इस तत्व में लौह प्रचुर मात्रा में होता है।
लाल रुधिर कणिकाएँ गर्भावस्था में यकृत और प्लीहा मे बनती हैं तथा जन्म के उपरान्त अस्थियों की मज्जा (bone marrow) मे बनने लगती हैं। लाल रुधिर कणो का जीवन अल्पकालीन होता है। रुधिर धारा मे प्रवेश के पश्चात लगभग 90 -120 दिनो के बाद इनका विनाश हो जाता है। प्रायः प्लीहा मे इनका जीवन समाप्त होता है।
श्वेत रुधिर कणिकाएँ (WBCs):-
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white blood cells |
ये रंगविहीन होती हैं। इनकी आकृति सुडौल नहीं होती एवं निरन्तर परिवर्तित होती रहती है। इसा कारण ये पानी में तैरने वाले अमीबा के समान लगती हैं। इनका आकार लाल कणिकाआ से बड़ा होता है। इनकी संख्या लाल कणिकाओं से बहुत कम होती है। श्वेत एवं लाल कणिकाओं का अनुपात 1:625 के लगभग होता है।
इनका मुख्य कार्य शरीर को रोग के रोगाणुओं से रक्षा करना है। इनमें से कुछ तो इन रोगाणुओं एवं अन्य विकारों से रक्षा करती है और कुछ एक प्रकार का प्रति जीव विष (anti-toxin) तैयार करती हैं। ये रोगाणुओं के द्वारा उत्पन्न जीव विष का प्रतिरोध करती हैं और उसे कमजोर बनाती हैं। इस प्रकार इसके दो कार्य होते हैं
1. रोगाणुओ को ग्रसना।
2 शरीर रक्षा के लिए रक्षित क्षेत्र तैयार करना।
बिम्बाणु (Platelets):-
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platelets |
इनका निर्माण अस्थिमज्जा के महामूल लोहित कोशिकाओ (megakaryocytes) से होता है और कुछ समय पश्चात् इनका विनाश प्लीहा में हो जाता है। इनका प्रमुख कार्य रुधिर को जमने में सहायता प्रदान करना होता है इनका जीवन काल लगभग 5.9 दिन का होता है। बिम्बाण रोगो के जीवाणुओ से शरीर की रक्षा करने में सहायक होते हैं।
प्लीहा (Spleen):-
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spleen |
प्लीहा की लम्बाई 13 सेमी, चौड़ाई 8 सेमी तथा जिसकी अवकोशिकाओं में मृदु द्रव (Soft substance) भरा होता है। इसमें लसीका ऊतक संघ अन्य कोशिकाए होती हैं। प्लीहा का आवरण कॉलेजन तथा एलास्टिक ऊतक का बना होता है तथा इसमें कुछ चिकने तथा आरेखित पेशी तन्तु भी होते हैं।
प्लीहा की रुधिर वाहिकाएँ हाइलम पर विद्यमान होती हैं, लेकिन कोशिकाओं का जाल नहीं होता है।
रक्तवाहीकाओं से रुधिर सीधा प्लीहा ऊतक में पहुँच जाता है, जोकि अनेकशिरा नालो में एकत्रित हो जाता है, जहाँ से अन्त में प्लीहा शिरा में होता हुआ यकृत में पहुँच जाता है।
प्लीहा के कार्य (Functions of Spleen):-
प्लीहा लाल रुधिर कोशिकाओं का निर्माण करती है। यह रुधिर परिसंचरण से टूटी-फूटी लाल रुधिर कोशिकाओं को हटाती है तथा लिम्फ कोशिकाओं का निर्माण करती है। रुधिर कोशिकाओं तथा बिम्बाणु प्लीहा में ही नष्ट होते हैं। यह प्रतिपिण्डों का निर्माण कर शरीर की रोगों से रक्षा करती है। प्लीहा जीवन के लिए अनिवार्य नहीं है।आपातकाल या कार्य बढ़ जाने पर, प्लीहा संकुचित होकर सामान्य रुधिर परिसंचरण में अधिक मात्रा में रुधिर को धकेल देती है। जब भी शरीर को रुधिर की अविलम्ब आवश्यकता होती है, असंख्य लाल रुधिर कण जिनमें ऑक्सीजन भरी होती है, उसके सहायतार्थ पहुँच जाते हैं।
प्लाज्मा (Plasma):-
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plasma differentiate from blood |
* जीवित कोशिकाओं को शर्करा, पेप्टोन, लवण तथा पानी की सहायता से पौष्टिकता प्रदान करना।
• रोगाणुओं का विष मारने के लिए प्रति-विष उत्पन्न करना।
रुधिर प्लाज्मा दो भागों से बना होता है:-
सीरम (Serum):-
यह जल सदृश पदार्थ है, जब रुधिर थक्क में बदल जाता है तब उसमें से पानी जैसा द्रव्य चूकर अलग हो जाता हैं , उसे ही सीरम कहते हैं।फाईब्रिन (Fibrin):-
फाइब्रिन, घुलनशील प्रोटीन के रूप में प्लाज्मा मेंपाया जाता है प्लाज्मा में स्थित फाइब्रिन ही जमकर रुधिर का थक्का (clotting of blood) बनाने में मदद करता है।रुधिर समूह (Blood Group):-
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blood group |
वर्ष 1902 में नोबेल पुरस्कार विजेता कार्ल लेण्डस्टीनर ने रुधिर समूहों की खोज की। मनुष्यों में चार रुधिर समूह होते हैं : A, B, AB, O, O समूह का रुधिर किसी भी मंनष्य को दिया जा सकता है, इसे सर्वदाता (Universal donor) कहते हैं। AB समूह सभी रुधिर समूहों से रुधिर ग्रहण कर सकता है। इसे सर्वग्राही (Universal Recipient) कहते हैं।
Rh फैक्टर (Rh Factor):-
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Rh factor |
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