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मनुष्य में किडनी रोग kidney disease in human

आज कल हमारे समाज में इतनी भाग दौड़ हो गयी है की किसी को किसी से हाय हेल्लो भी करने का समय नहीं मिलता है घर समाज में हम इतने व्यस्त हो गए है की हम अपने स्वस्थ का भी ख्याल ठीक से नहीं रख पते है |

आज के समय में ग्रामीण क्षेत्र हो या शहर या हमारे आस पास का वातावरण हर जगह प्रदूषण फैला हुआ है आये दिन हमारे वातावरण में जहर घुल रहा है | अब तो जो हवा या ऑक्सीजन हम लेते है वो भी शुध्द नहीं रह गया है |
तो जाहिर सी बात है ऐसे में हमारा स्वस्थ बिगड़ना लाजमी है ,हमारे रहन सहन से भी हमारे स्वस्थ पर प्रभाव पड़ता है |

इस भाग भरी जिन्दगी में हमारी सेहत दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा है और अपने आस पास देखा जाये तो पता चलता है की प्रत्येक 10 व्यक्ति में से 7 या 8 लोग किसी ना किसी  बीमारी से ग्रस्त है | उसमे से एक बीमारी है किडनी की बीमारी जो अक्सर किसी ना किसी को अपने पास पाएंगे |

ऐसे में हम जब डाक्टर के पास जाते है तो डाक्टर चेक करने के बाद हमें बताता है की आपको ये बीमारी है वो बीमारी है और हमें टेंशन हो जाती है क्योकि हमें तो उस बीमारी के बारे में पता नहीं होता ना  ये क्या होता है ? कौन सी बीमारी है ?

तो चलिए जान लेते है  किडनी  से सम्बंधित बीमारियों को क्या होता है और किस कारण से होता है ?हो सकता है की कुछ का नाम सुना हो पर आज अच्छे से जान लेते है |



1- एक्यूटरीनल फेल्योर .(Acute Renal Failure or ARF) :-

वृक्क (kidney) to catet में अचानक बाधा आ जाना फलस्वरूप रक्त के अन्दर नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाना।

कारण :-


  1. वृक्क को अपर्याप्त रुधिर आपूर्ति (renal ischaemia)
  2. यह कुछ औषधियों जैसे कि, एन्टीबायोटिक्स के दुष्प्रभावों के रूप में भी हो सकता है
  3. डायरिया, उल्टी, सिरदर्द, जलन आदि की वजह से परिसंचरण आयतन का कम हो जाना
  4. प्रोस्टेट ग्रन्थि का आकार बढ़ने (prostatic hypertrophy), रीनल केलकुली, रीनल टयूमर, यूरेथल, स्टेनोसिस आदि के कारण मूत्रमार्ग का अवरुद्ध हो जाना।
  5. एक्यूट रीनल रोग
  6. एक्यूट ट्यूबुलर नैक्रोसिस


लक्षण:-

(i) ऑलिगयूटिक अवस्था

  1. यूरिमिया-रक्त के अन्दर नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों जैसे यूरिया, यूरिक अम्ल, क्रिएटिनिन आदि की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाती है 
  2. भूख कम लगती है।

(ii) डाइयुरेटिक अवस्था

  1. हाइपोटेन्सन
  2. टेकार्डिया (हृदय धड़कन का बढ़ जाना)

(iii) रिकवरी अवस्था

  1. मूत्र त्याग सामान्य हो जाता है।
  2. रक्त में यूरिया, क्रिएटिनिन आदि नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा सामान्य हो जाती है।


उपचार :-


  1. रोगी का दवा लेने की मात्रा द्रव नियन्त्रित करें।
  2. डाइयूरेटिक्स की व्यवस्था करे जैसे लेसिक्स (urine output को बढ़ाने के लिए)
  3. रोगी को उच्च कैलोरी एवं कम प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ दें।
  4. यदि आवश्यक हो तो खाने में सोडियम की मात्रा कम करें।
  5. यदि आवश्यक हो तो डायलाइसिस करें।




2- क्रोनिक रीनल फैल्योर [Chronic Renal Failure (CRF)] :-

वृक्क के कार्यों में Progressively बाधा उत्पन्न हो जाने के कारण रक्त में नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा व, रक्तदाब का बढ़ जाना, एनीमिया हो जाना आदि।

कारण:-


  1. एक्यूट रीनल फ्ल्योर की टूट-फूट नहीं होने पर यह क्रोनिक रीनल फेल्योर में बदल सकता है।
  2. क्रोनिक ग्लोमेरुलोनेक्रिटिस (glomerulus) का प्रदाह
  3. पॉलीसिस्टिक वृक्क बीमारी
  4. बार-बार पॉलीनेफीटिस को होना वृक्क एवं रीनल पेल्किस का प्रदाह
  5. डायबिटिज मैलिटस का होना
  6. उच्च रक्त दाब का होना
  7. वृक्क को अपर्याप्त रुधिर आपूर्ति (renal ischaemia)


लक्षण :-


  1. मूत्र त्याग का कम हो जाना। रोगी को एन्यूरिया या ऑलिगयूरिया हो सकता है।
  2. उच्च रक्त दाब का होना
  3. मूत्र की specific gravity का कम हो जाना
  4. एनीमिया
  5. एजोटेमिया (रक्त में नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों का बढ़ जाना)
  6. खुजली होना (pruritis)
  7. शरीर में सूजन आना
  8. रोगी को मुँह में कड़वा एवं
  9. नमकीन स्वाद महसूस होना।
  10. कब्ज  (constripation) का  होना।
  11. जी मिचलाना तथा उल्टी हो जाना।
  12. भूख का कम हो जाना


उपचार :-


  1. रोगी का रक्त दाब सामान्य बनाए रखने के लिए एन्टीहाइपरटेन्सिव तथा डाइयूरेटिक्स दवाइयाँ दें।
  2. रोगी के खाने में नमक नहीं डालें तथा रोगी को कम कोलेस्टेरॉल तथा कम प्रोटीन युक्त डाइट दें।
  3. रोगी का हीमोग्लोबिन स्तर सामान्य बनाए रखने के फॉलिक एसिड शुरु करें तथा यदि आवश्यक हो तो रक्त चढ़ाए।
  4. सूजन (oedema) को दूर करने के लिए खाने में सोडियम नहीं डालें, रोगी का fluid intake नियन्त्रित करें तथा diuretic दवाइयाँ जैसे -Lasix दें।
  5. रोगी का intake-output chart व्यवस्थित करें।

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3- यूरीनरी ट्रेक्ट इन्फेक्शन (UTI) :-

 मूत्र मार्ग में होने वाला संक्रमण, जोकि सामान्यता यूरीनरी ब्लेडर पर प्रभाव डालता है। यूरेथ्रा, यूरेटर एवं वृक्क में भी हो सकता है।

कारण :-


  1. एश्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) यह लगभग 90% संक्रमण के लिए उत्तरदाई है।
  2. स्ट्रेप्टोकोसी द्वारा
  3. स्योडोमोनास द्वारा
  4. सेरेटिया द्वारा
  5. स्टेफाइलोकोकाई द्वारा रिसक कारक सेक्सुअली एक्टिव एवं गर्भवती महिला में
  6. इनडवेलिंग कैथेटर की उपस्थिति में
  7. ऐसी महिलाएँ, जो सिन्थेटिक अन्डरवियर एवं टाइट जीन्स पहनती हैं।
  8. परफ्यूम टोइलेट पेपर, सेनीट्री नेपकिन्स आदि के प्रयोग से


लक्षण :-


  1. मूत्र त्याग में कठिनाई (dysuria) होना
  2. मूत्र त्याग के दौरान जलन (burning micturition) EHI
  3. बार-बार मूत्र त्याग करना
  4. रोगी मूत्राशय को पूरी तरह खाली नहीं कर पाता तथा बार-बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में मूत्र त्याग करता है।
  5. निचले उदर में दर्द या पीठ के निचले हिस्से में दर्द रहना
  6. गहरे रंग के मूत्र का होना।
  7. मूत्र के साथ रक्त आना
  8. बुखार रहना
  9. मिचली एवं वमन होना
  10. मूत्र त्याग की तीव्रता महसूस होना


उपचार :-


  1. यूरीनरी एन्टीसेप्टिक जैसे कि. सिनॉक्सिन नलीडिक्सिक अम्ल नॉरफ्लेक्सिन आदि का प्रयोग करना चाहिए
  2. दर्द निवारक दवाएँ लेनी चाहिए
  3. एन्टीस्पास्मोरिक्स, ऑक्सीब्यूटायनिन क्लोराइड का प्रयोग
  4. एन्टीबायोटिक्स सिप्रोफ्लोक्सिन,एम्पीसिलीन आदि का प्रयोग
  5. चाय, कॉफी का सेवन न करें।
  6. रोगी को अधिक पानी पीने की सलाह दें।
  7. शरीर का तापमान सामान्य रखने के लिए एन्टीपाइरेटिक दवाइयाँ; जैसे- पेरासिटामोल (paracetamol) का प्रयोग करें।




4- ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (glomerulone-phritis) :-

वृक्क के ग्लोमेरुलम में प्रदाह (inflammation)

कारण:-


  1. ग्रुप ए बीटा हीमोलाइटिक  स्ट्रेप्टोकोकाई का संक्रमण
  2. स्टेफायलोकोकाई, न्यूमोकोकाई, साल्मोनेला आदि द्वारा अन्य संक्रमण होना।


लक्षण :-


  1. उच्च दाब चाप (hypertension)होना 
  2. मूत्र के साथ रुधिर
  3. मूत्र के साथ प्रोटीन आना
  4. ज्वर एवं भूख का कम होना
  5. गहरे रंग के मूत्र का होना
  6. मूत्र की मात्रा कम हो जाना।
  7. नमक तथा पानी के रिटेन्सन के । कारण सामान्य सूजन की उपस्थिति। सूजन आँखों के चारों तरफ सबसे अधिक दिखाई देता है।


उपचार :-


  1. संक्रमण को ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक उदाहरण नॉरफ्लेक्सिन लें
  2. मूत्र प्रवाह बढ़ाने के लिए डाइयूरेटिक डाइयूरेटिक उदाहरण लेसिक्स लें
  3. एन्टीहाइपटेन्सिव दवाइयाँ दें
  4. एन्टीपाइरेटिक दवाइयाँ जैसे पेरासिटामोल दें
  5. तरल पदार्थों का सेवन कम मात्रा में करें।




5- रीनल पेल्विस(renal pelvis) में प्रदाह (inflammation):-


कारण :-


  1. ई. कोलाई (Escherichia coli) सबसे मुख्य कारण है।


लक्षण :-


  1. एक्यूट पाइलेनेफ्रिटिस
  2. ज्वर (38-40°C)
  3. मूत्रत्याग में कठिनाई (dysuria)
  4. उल्टी (vomitting) भी हो सकती है।
  5. बदबूदार एवं क्लाउडी मूत्र की उपस्थिति
  6. बैचेनी
  7. क्रोनिक पाइलेनेफ्रिटिस
  8. उच्च रक्त दाब इसका सबसे मुख्य लक्षण है।
  9. बार-बार थोड़ा-थोड़ा मूत्र त्याग करना


उपचार :-


  1. यूरीनरी एन्टीसेप्टिक की व्यवस्था करें उदाहरण सिनोक्सिन, नलीडिक्सिक अम्ल आदि दें
  2. एन्टीबायोटिक्स की व्यवस्था करें उदाहरण सिपरोफ्लोक्सिन दे 
  3. शरीर का तापमान सामान्य रखने के लिए दवाइयाँ जैसे पेरासिटामोल दें।
  4. रक्त दाब को सामान्य बनाएँ रखने के लिए एन्टीहाइपटेन्सिव दवाइयाँ दें।



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6- बेनिग्न प्रोस्टेटिक (Benign Prostatic Hyperplasia - BPH):-

 इस रोग में प्रोस्टेट ग्रन्थि का आकार बढ़ जाता है। यह पुरुषों में पाए जाने वाली सबसे सामान्य बीमारी है।

कारण :-


  1. कारण अज्ञात है , यह  बीमारी 50-55 साल की उम्र में के बाद ज्यादा होती है।


लक्षण :-


  1. बार-बार मूत्र त्याग करना
  2. बूंद-बूंद के रूप में मूत्र का आना
  3. मूत्र प्रवाह में रुकावट आना
  4. मूत्र के साथ रुधिर का आना (hematuria)
  5. बैचेनी (restlessness) एवं चिन्ता घबराहट महसूस होना


उपचार :-


  1. यदि मनाही न हो तो, रोगी को प्रतिदिन 3 लीटर तरल पदार्थ लेने की सलाह दें
  2. मूत्र मार्ग के संक्रमण के दौरान एंटीबायोटिक दें
  3. सर्जिकल उपचार
  4. प्रोस्टेक्टॉमी-प्रोस्टेट ग्रन्थि को ऑपरेशन द्वारा निकाल देना।




7- यूरोलिथिएसिस (Urolithiasis) :-

मूत्र प्रणाली में पथरी की उपस्थिति को यूरोलेथिएसिस कहते हैं। प्रारम्भिक तौर पर पथरी का निर्माण वृक्क में होता है, परन्तु यह मूत्र नली से होती हुई मूत्राशय तक पहुँच जाती है।

कारण :-


  1. भोजन में कैल्शियम, विटामिन-D, ऑक्जेलेट एवं प्यूरीन्स को अधिक मात्रा में लेना
  2. मूत्र प्रवाह में बाधा होना
  3. यूरीनरी ट्रेक्ट इनफेक्सन होना
  4. मूत्र मार्ग में बाहरी निकायों की उपस्थिति होना
  5. व्यक्ति द्वारा मूत्राशय को पूरी तरह खाली नहीं कर पाना
  6. तरल पदार्थों की मात्रा कम लेना।
  7. हाइपरकैल्शीमिया
  8. हाइपरपेराथाइरॉइडिज्म
  9. लम्बे समय तक (urinary catheter) का प्रयोग करना रुधिर में यूरिक एसिड की अधिकता होना

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लक्षण :-


  1. मूत्र नली में पथरी के दौरान पार्श्व क्षेत्र एवं पेंट में दर्द उठता है। यह दर्द जननांगों एवं जाँघ की तरफ बढ़ता होता है।
  2. मूलनली में गति के दौरान जठरांत्र जटिलातएँ उत्पन्न हो सकती है। दाईं मूत्र नली गति के दौरान कब्ज, बठना तथा दाँए lower quadrant में दर्द होता है। बाईं मूत्र नली में गति के दौरान मतली, उल्टी तथा left lower quadrant में दर्द होता है।
  3. वृक्क में पथरी के दौरान सामान्यतया दर्द लम्बर क्षेत्र में उठता है। दर्द बहुत तेज होता है।
  4. हल्का बुखार होता है।


उपचार :-


  1. रोगी को प्रतिदिन लगभग . 3000-4000 मिली तरल पदार्थ देना चाहिए। यह मूत्र के साथ पथरी (stone) के बाहर निकलने में सहायक हो सकता है।
  2. सर्जिकल उपचार
  3. एक्सट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लीथोट्रिपसी (ESWL) इस प्रक्रिया में वृक्क मूत्रनली में स्थित पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है। ये टुकड़े मूत्र के साथ बाहर निकल जाते हैं।
  4. पाइलोलिथोटॉमी-इस प्रक्रिया को रीनल पेल्विस में स्थित पथरी को बाहर निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  5. नेफ्रोलिथोटॉमी-इस प्रक्रिया के द्वारा वृक्क में स्थित पथरी को बाहर निकाला जाता है।
  6. आंशिक या पूर्ण नेफ्रेक्टॉमी 


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